Wednesday, October 22, 2014

हज्ज की अनिवार्यताः

हज्ज की अनिवार्यताः
अरबी भाषा में हज्ज का अर्थ होता है ‘क़सद करना, इच्छा और इरादा करना’, फिर शरीअत के प्रयोग और उर्फे-आम में अधिकतर ‘अल्लाह तआला के घर (खाना कअ्बा) का क़सद करने और वहाँ आने’ के लिए बोला जाने लगा। चुनाँचे सामान्यतः हज्ज का शब्द बोलने से इसी विशिष्ट प्रकार का क़सद ही समझा जाता है; क्योंकि यही क़सद वैध और अधिकाँश रूप से पाया जाने वाला है।
शरीअत में हज्जः विशिष्ट स्थान पर, विशिष्ट समय में, विशिष्ट व्यक्ति के द्वारा, कुछ विशिष्ट कार्यों के करने का नाम हज्ज है।
हज्ज उन पाँच स्तम्भों में से एक है जिन पर इस्लाम की नीव स्थापित है। हज्ज के अनिवार्य होने की दलील (प्रमार्ण ) कुर्आन, हदीस और इज्माअ् (उम्मत के विद्वानों की सर्व सहमति) हैः
अल्लाह तआला का फर्मान है:
¬!नत, ष्दघ्जह्म घ¨$र्¨9$रु ाड्डउ ड्डडøज7ø9$रु ृिंजठ जद्द$ेश्जळóन्न्$रु ड्डउø९े9ट्ठद्ध ॅग९ट्ठ6लन्न् 4 ृजठनत जगÿगण् ¨इट्ठ’ेù ©!$रु य्यट्टऋगî ृिंजह्म जûüड्डश्रदत्र»लध्ø9$रु ख्भिंÐीं ख्سورة آل عمرانरू97,
‘‘अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामथ्र्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है, और जो कोई कुफ्र करे (न माने) तो अल्लाह तआला (उस से बल्कि) सर्व संसार से बेनियाज़ है।’’ (सूरत आल-इम्रानः97)
तथा पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फर्मान है:
‘‘इस्लाम की नीव पाँच चीज़ों पर स्थापित है।’’ ख्1,
और आप ने उन में से एक स्तम्भ हज्ज का उल्लेख किया।
तथा एक दूसरी हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
‘‘ऐ लोगो! अल्लाह तआला ने तुम्हारे ऊपर हज्ज को अनिवार्य किया है। अतः तुम हज्ज करो...।’’ ख्2,
तथा उम्मत इस बात पर सम्मत है कि समर्थ (धन्वान) व्यक्ति पर जीवन में एक बार हज्ज करना अनिवार्य है।ख्3,
उम्रा की अनिवार्यता:
अरबी भाषा में उम्रा का अर्थ ‘जि़यारत करना’’ होता हैं। और शरीअत मेंः एक विशिष्ट रूप में, एहराम, तवाफ, सई और बाल मुँडाने अथवा कटाने, फिर हलाल होजाने के साथ अल्लाह के प्राचीन घर की जि़यारत करना।
उचित (शुद्ध) बात यह है कि उम्रा उस व्यक्ति पर अनिवार्य है जिस पर हज्ज अनिवार्य है, क्योंकि उमर बिन खत्ताब रजि़यल्लाहु अन्हु की हदीस से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में साबित है कि आप ने जिब्रील से फरमाया:
‘‘... इस्लाम यह है कि तुम इस बात की गवाही दो कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के पैग़म्बर (ईश्तदूत) हैं, नमाज़ क़ाईम करो, ज़कात दो, हज्ज एंव उम्रा करो, जनाबत से (पत्नी से संभोग करने पर ) स्नान करो, सम्पूर्ण वुज़ू करो और रमज़ान का रोज़ा रखो।’’ख्4,
आईशा रजि़यल्लाहु अन्हा ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा: ऐ अल्लाह के पैग़म्बर ! क्या महिलाओं पर जिहाद अनिवार्य है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उत्तर दिया:
‘‘हाँ, उन पर ऐसा जिहाद अनिवार्य है जिस में लड़ाई-भिड़ाई नहीं है: वह हज्ज और उम्रा है।’’ख्5,
अबू रज़ीन से रिवायत है कि उन्हों ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल ! मेरे बाप बहुत बूढ़े हो चुके हैं, वह हज्ज और उम्रा करने, तथा सवारी पर बैठने की ताक़त नहीं रखते हैं, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
‘‘तो तुम अपने बाप की ओर से हज्ज और उम्रा करो।’’ ख्6,
इब्ने उमर रजि़यल्लाहु अन्हुमा फरमाते हैं: ‘‘कोई भी व्यक्ति नहीं है किन्तु उस पर हज्ज और उम्र अनिवार्य है।’’ख्7,
यही बात शुद्ध है जिस पर शरीअत के प्रमाण और तर्क स्थापित हंै कि उम्रा, हज्ज के समान फजऱ् है और जीवन में एक बार उस आदमी पर अनिवार्य है जिस पर हज्ज अनिवार्य है। यही उमर, इब्ने अब्बास, ज़ैद बिन साबित, अब्दुल्लाह बिन उमर, जाबिर बिन अब्दुल्लाह और इनके अतिरिक्त अन्य सहाबा रजि़यल्लाहु अन्हुम के कलाम (कथन) का अर्थ है।ख्8,
हज्ज और उम्रा जीवन में केवल एक बार ही अनिवार्य है; क्योंकि इब्ने अब्बास रजि़यल्लाहु अन्हुमा की हदीस में है कि अक़रअ् बिन हाबिस रजि़यल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न करते हुए कहा: ऐ अल्लाह के रसूल ! क्या हज्ज प्रति वर्ष है या केवल एक बार? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उत्तर दिया:
‘‘बल्कि केवल एक बार है, जो व्यक्ति इस से अधिक बार करे, तो यह नफ्ल है।’’ ख्9,

ख्1,  बुखारी फत्हुलबारी के साथ 1/49, मुस्लिम 1/45
ख्2, मुस्लिम 2/975
ख्3, अल-मुग़्नी लिब्ने क़ुदामा 5/6
ख्4, दारक़ुत्नी ने रिवायत करके इसके इस्नाद को साबित और सहीह कहा है 2/283, बैहक़ी 4/350
ख्5,  इब्ने माजह, मुस्नद इमाम अहमद 6/156, अल्बानी ने सहीह इब्ने माजह 2/151 में इसे सहीह कहा है।
ख्6,  अहलुस्सुनन ने इसे रिवायत किया है और अल्लामा अल्बानी ने सहीह कहा है। देखिए: सहीहुन्नसाई 2/556, सहीह अबू दाऊद 1/341, सहीह इब्ने माजह 2/152, सहीहुत्तिर्मिज़ी 1/275
ख्7,  बुखारी फत्हुलबारी के साथ 3/597
ख्8, देखिए: अल-मुग़्नी लिब्ने क़ुदामा 5/13, शरहुल उम्दा फी बयानि मनासिकिल हज्ज वल उम्रा लिशैखिल इस्लाम इब्ने तैमियह 1/88-98, फत्हुलबारी 3/597, फतावा इब्ने तैमियह 6/256

ख्9,  अबू दाऊद, नसाई, इब्ने माजह, अहमद इत्यादि तथा अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद 1/324, सहीह नसाई 2/556, और सहीह इटने माजह 2/148 में इसे सहीह कहा है।

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